उनके शरीर के अंश धरती में समा गए थे। उन अंशो के धरती में समाने के से चावल के पौधे की उत्पत्ति हुई थी।
इसी वजह से चावल को पौधा नहीं, बल्कि जीव माना जाता है।
महर्षि मेघा ने एकादशी के दिन शरीर त्यागा था। इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाते है। एकादशी के दिन चावल खाने से महर्षि मेघा के रक्त और मांस खाने के बराबर अपराध लगता है और व्यक्ति अगले जन्म में सर्प के रूप में जन्म लेता है।
By Neeru Rajput